सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

रविवार, 8 फ़रवरी 2009

मत जालाओ सोने की लंका

सिंधु का श्रजन
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कभी वास्तविक कथा पर आधारित
कल्पनिक चलचित्र में, नायक ने सहायक से
पूछा कुछ इस तरह ,साब! ये कंपनी क्या होती है ?
सहायक अंग्रेज बहादुर ने,नायक हिंदू सिपाही को
कुछ इस तरह समझाया
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"जैसे तुम्हारी रामायण में एक राक्षस है दस सिरोवाला रावण !
वैसे ही कंपनी भी दस शीरोधारी रावण हुआ करती है "
जो हर ओर से निग़लाना जानती है और स्वयं को श्रेष्ठ मानती
नायक ने कंपनी बहादुर के बहादुर से जो भी सीख पाई हो
फिल्म पर्दे पर जैसे भी दिखाई हो
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आज के विलासी समाज की समझ भले ना आई हो
किंतु मेरी तुच्छ सी मती में इतना समझ आ गया
कंपनी का अंग्रेज बहादुर शब्द थोड़े में
बीज मंत्र कंपनी का हमें दिखा
ज़रा सोचो तो सही ?
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दशानन दो हाथो से सीर बीस को कैसे खिलाता होगा
दस दिमागों के निर्णय को निश्चय तक कैसे लाता होगा
द्वंद मचाते हो मस्तिष्क दसो दिशाओं से
द्रविण अधीराज रावण , लंका से कैलास तक नित्य कैसे जाता होगा
दृगबीस से दैत्रोराज लंकेश, कैसा द्रष्टीकोण
कहना सरल है
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दो द्रगो को नियंत्रित,दो वक्त को कर लीजिये
दो पैरो पर दस सीरो,सह भुजा बीस धर लीजिये
एक प्रयाश है मेरे मित्रो,धारा से उठने का सहस कीजिए
अब चल के दिखाओ,गर हिम्मत है तो युद्ध कीजिए
बात तो तब है
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सोने की छोड़ गारे की लंका बाना दीजिए
हमने सोडीत से सीचा,तुम पसीना बाहा दीजिये
पत्नी को परिवार कहते हो,बंधुओ बड़े शान से
लाख सबा लाख के कुटुम्बियों के संग दो दिन रह लीजिए
अगर नही तो फिर
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